Tanot Rai Mata History

ॐ - श्री तनोट राय माता

Journey Through Time: The Evolution of Shri Tanot Mata Mandir

Shri Tanot Mata Mandir is an ancient Hindu temple situated in the Jaisalmer district of Rajasthan, India. It is dedicated to Tanot Rai, a manifestation of the Hindu goddess Hinglaj Mata. The temple has a rich and fascinating history that dates back several centuries.

According to local legends, the temple was established by a group of local tribes who worshipped the goddess Tanot Rai. Over time, the temple grew in popularity and became a significant religious site for devotees.

During the Indo-Pakistani War of 1965, the temple played a pivotal role in protecting the Indian army stationed at the nearby border. It is believed that bombs dropped by the Pakistani Air Force failed to harm the temple, and the goddess protected the soldiers from harm. This incident gained immense popularity, and the temple became a symbol of India’s victory in the war.

The Tanot Rai Mata Mandir Trust manages the temple and works towards its upkeep and preservation. The trust also supports the local community through various developmental projects. Today, Shri Tanot Mata Mandir is a renowned pilgrimage site and attracts visitors from all over India and the world.

The temple’s rich history, cultural significance, and divine aura continue to inspire and attract devotees seeking spiritual enlightenment.

ॐ - श्री तनोट राय माता

Shri Tanot Rai Mata Mandir

Shri Tanot Rai Mata Mandir is a significant Hindu temple located in the Jaisalmer district of Rajasthan, India. The temple is devoted to the goddess Tanot Rai, a manifestation of the Hindu goddess Hinglaj Mata. The history of the temple dates back several centuries, and it is said to have been established by local tribes who worshipped the goddess Tanot Rai.

According to legend, during the Indo-Pakistani War of 1965, the temple played a significant role in protecting the Indian army stationed at the nearby border. It is believed that bombs dropped by the Pakistani Air Force failed to harm the temple, and the goddess protected the soldiers from harm. As a result, the temple gained immense popularity and is considered a symbol of India’s victory in the war.

The temple has since become a significant religious site for devotees and attracts visitors from all over India and the world. The Tanot Rai Mata Mandir Trust manages the temple and ensures its upkeep and preservation.

The trust also works to promote the cultural heritage of the region and supports the local community through various developmental projects. The temple’s rich history and cultural significance continue to inspire and attract devotees and visitors seeking spiritual enlightenment.

ॐ - श्री तनोट राय माता

श्री तनोट राय मंदिर का इतिहास

माता श्री हिंगलाज के वचनानुसार माड़ प्रदेश (जैसलमेर राज्य) में चेलक निवासी मामड़िया जी कि प्रथम सन्तान के रूप में वि.सं. 808 चैत्र सुदी नवमी मंगलवार को भगवती श्री आवड़ देवी (माता तनोटराय) का जन्म हुआ। इनके बाद जन्मी भगवती की 06 बहिनों के नाम आशी, सेसी, गेहली, होल, रूप व लांग था। अपने अवतरण के पश्चात् भगवती आवड़ जी ने बहुत सारे चमत्कार दिखाये तथा नगणेची, काले डूंगरराय, भोजासरी, देगराय, तेमड़े राय व तनोट राय नाम से प्रसिद्ध हुई।

तनोट के अन्तिम राजा भाटी तनुराव जी ने वि.सं. 847 में तनोटगढ़ की नींव रखी तथा वि.सं. 888 में तनोट दुर्ग एंव मंदिर की प्रतिष्ठा करवायी थी।

1965 में भारत-पाक युध्द के समय पाकिस्तान ने मंदिर तथा आसपास लगभग 3 हजार बम बरसाये। 450 गोले मंदीर परिसर में गिरे किंतु मंदिर को खरोंच भी नहीं आयी। इसी प्रकार 1971 के भारत-पाक युद्ध में माता तनोट की कृपा से शत्रु के सैकड़ों टैंक व गाड़ियों को भारतिय फौजों ने नेस्तानाबूद कर दिये और शत्रु दुम दबाकर भागने को विवश हो गये अतः माता श्री तनोट राय भारतीय सैनिकों व सीमा सुरक्षा बल के जवानों की श्रद्धा का विशेष केन्द्र है।

श्री तनोट राय महाशक्ति मॉ श्री आवड़ जी का स्वरूप है। सेवक गुमान सिंह जी के मॉ तनोट दर्शन दिया करती थी और युद्ध के दौरान मॉ ने गुमान सिंह जी के मार्फत दर्शन देकर ज्योत करने का हुकुम दिया था, उस समय चारों तरफ गोला-बारी हो रही थी, मोर्चे में मौजूद जवानों द्वारा उपलब्ध संसाधनों का उपयोग करते हुए डालडा घी से बेलचा में ही मॉ की ज्योत की गई, ज्योत के बाद गुमान सिंह जी ने पानी की मटकी में गाय का दूध मिलाया और मोर्चे के बाहर उस दूध की चारों तरफ कार निकाली।

मॉ ने सैनिकों को मोर्चे से बाहर नहीं निकलने का आदेश दिया, सैनिकों ने मॉ के आदेश का अनुशरण किया, जिसके फलस्वरूप लड़ाई में पाकिस्तानी सेना द्वारा गिराये गये बमों में से एक भी बम नहीं फुटा और जवानों में से किसी का बाल भी बांका नहीं हुआ।

युद्ध के बाद जवान गुमान सिंह जी को मॉ श्री तनोटराय ने सपने में दर्शन देकर तनोट में मंदिर बनाने का आदेश दिया और एक निश्चित स्थान पर खुदाई करने को कहा। उन्हें जिस स्थान पर खुदाई करने का निर्देश प्राप्त हुआ था, वहां राजा तन्नू राव के द्वारा 847 ईस्वी में बनवाया गया श्री तनोटराय माता का मंदिर मौजूद था, जो जमीन में कई फिट नीचे जा चुका था। जब उस स्थान पर खुदाई की गई तो जमीन में से आवड़ माता सहित सातों बहिनों की लकड़ी की मूर्ति, एक तलवार, एक चिमटा, एक नगाड़ा और एक त्रिशूल निकला।

वह मूर्ति आज भी तनोट स्थित मंदिर में है और बाकी चारों चीजें गुमान सिंह के गांव समीचा में उनके द्वारा स्थापित श्री तनोटराय माता मंदिर में मौजूद है। खुदाई के स्थान के उत्तर में लगभग 50-60 मीटर की दूरी पर उनके द्वारा एक छोटे मंदिर का निर्माण करवाया गया था, जो गत वर्षों में धीरे-धीरे बदलाव के साथ आज के इस वर्तमान स्वरूप में हम सबके सामने हैं।

1965 के युद्ध में पाकिसतानी फौज के द्वारा श्री घंटियाली माता मंदिर की मूर्तियां भी खंडित कर दी गई थी, जिसके पश्चात श्री तनोटराय मंदिर की स्थापना के साथ ही गुमान सिंह जी के द्वारा वहां नई मूर्तियों की स्थापना की गई थी।

वर्ष 1965 में सीमा सुरक्षा बल (BSF) ने यहाँ सीमा चौकी की स्थापना कर इस मंदिर की पूजा अर्चना व व्यवस्था का कार्यभार संभाला तथा वर्तमान में मंदिर का प्रबंधन संचालन तनोट राय एवं घंटियाली माता ट्रस्ट द्वारा किया जा रहा है।

ॐ - श्री तनोट राय माता

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